कोटद्वार:- मूल निवास 1950 और सशक्त भू-कानून लागू किए जाने की मांग को लेकर कोटद्वार में हजारों लोग मूल निवास स्वाभिमान महारैली में सम्मिलित हुए। आज रविवार को हुई इस महारैली में कोटद्वार समेत प्रदेश के अलग-अलग क्षेत्रों से हजारों लोग शामिल हुए। ‘मूल निवास, भू-कानून समन्वय संघर्ष समिति’ के आह्वान पर हुई इस महारैली को देहरादून, हल्द्वानी और टिहरी की महारैली की तरह जबर्दस्त समर्थन मिला। निर्धारित कार्यक्रम के तहत कोटद्वार के देवी मंदिर से मालवीय उद्यान तक महारैली निकाली गई। महारैली से पहले देवी मंदिर के समीप सभा का आयोजन किया गया, जिसमें आंदोलनकारियों ने अपने विचार व्यक्त किए। ‘मूल निवास, भू-कानून समन्वय संघर्ष समिति’ के संयोजक मोहित डिमरी ने कहा कि चक्रवर्ती सम्राट भरत की जन्मस्थली कोटद्वार त्याग, तपस्या और बलिदान की भूमि है। देहरादून, हल्द्वानी, टिहरी में मूल निवास स्वाभिमान महारैली की सफलता के बाद कोटद्वार में महारैली हो रही है। गढ़वाल के प्रवेश द्वार में हुई इस महारैली का संदेश पहाड़ के गांव-गांव तक जाएगा और लोग अपने अधिकारों के लिए जागरूक होंगे। राष्ट्रवादी रीजनल पार्टी के संस्थापक शिवप्रसाद सेमवाल, कांग्रेस से बलबीर सिंह रावत, प्रवेश रावत, रंजना रावत, यूकेडी प्रवक्ता मीनाक्षी घिल्डियाल, हिंदू समाज पार्टी से दीपक रावत जयदेव भूमि फाउंडेशन से शिवानंद लाखेड़ा, महिला पतंजलि से शोभा रावत, अनिल डोभाल, पंकज उनियाल, अल्मोड़ा से राकेश बिष्ट, चौकुटिया से भुवन कठैत, छात्र अंकुश घिल्डियाल, पुष्पा चौहान, किरण बौड़ाई, बार एसोसिएशन से अजय पंत ने कहा कि उत्तराखंड के मूल निवासियों के अधिकार सुरक्षित रहें, इसके लिए मूल निवास 1950 और मजबूत भू-कानून लाना जरूरी है।
उन्होंने कहा कि आज प्रदेश के युवाओं के सामने रोजगार का संकट खड़ा हो गया है। वक्ताओं ने कहा कि जिस तरह प्रदेश के मूल निवासियों के हक हकूकों को खत्म किया जा रहा है, उससे एक दिन प्रदेश के मूल निवासियों के सामने पहचान का संकट खड़ा हो जाएगा। उन्होंने कहा कि अगर सरकार जनभावना के अनुरूप मूल निवास और मजबूत भू-कानून लागू नहीं करेगी तो इसके गंभीर परिणाम होंगे। कहा कि इस आंदोलन को प्रदेशभर से लोगों का मजबूत समर्थन मिल रहा है। उन्होंने कहा कि कोटद्वार की जनता ने स्पष्ट कर दिया है कि राज्य के लोग अपने अधिकारों, सांस्कृतिक पहचान और अस्तित्व को बचाने के लिए निर्णायक लड़ाई के लिए तैयार हैं। कार्यक्रम का संचालन मूल निवास भू कानून समन्वय संघर्ष समिति के कोर मेंबर प्रांजल नौडियाल ने किया। महारैली को प्रदेश के तमाम संगठनों ने समर्थन दिया। जिनमें उत्तराखण्ड क्रांति दल, राष्ट्रीय रीजनल पार्टी, पहाड़ी स्वाभिमान, सेना, समानता मंच, वन यूके, उत्तराखण्ड राज्य आंदोलनकारी मंच, छात्र संगठन, नागरिक मंच कोटद्वार, बेरोजगार संघ, बार एसोसिएशन कोटद्वार, सेवानिवृत्त कर्मचारी संगठन, पूर्व सैनिक संगठन, गौरव सेनानी सहित अन्य संगठन प्रमुख थे।
ये हैं प्रमुख मांगें
- मूल निवास की कट ऑफ डेट 1950 लागू की जाए।
- प्रदेश में ठोस भू-कानून लागू हो।
- शहरी क्षेत्र में 250 वर्ग मीटर भूमि खरीदने की सीमा लागू हो। 250 वर्ग मीटर जमीन उसी को दी जाय, जो 25 साल से उत्तराखंड में सेवाएं दे रहा हो या रह रहा हो।
- ग्रामीण क्षेत्रों में भूमि की बिक्री पर पूर्ण प्रतिबंध लगे।
- गैर कृषक द्वारा कृषि भूमि खरीदने पर रोक लगे।
- पर्वतीय क्षेत्र में गैर पर्वतीय मूल के निवासियों के भूमि खरीदने पर तत्काल रोक लगे।
- राज्य गठन के बाद से वर्तमान तिथि तक सरकार की ओर से विभिन्न व्यक्तियों, संस्थानों, कंपनियों आदि को दान या लीज पर दी गई भूमि का ब्यौरा सार्वजनिक किया जाए।
- प्रदेश में विशेषकर पर्वतीय क्षेत्र में लगने वाले उद्यमों, परियोजनाओं में भूमि अधिग्रहण या खरीदने की अनिवार्यता है या भविष्य में होगी, उन सभी में स्थानीय निवासी का 25 प्रतिशत और जिले के मूल निवासी का 25 प्रतिशत हिस्सा सुनिश्चित किया जाए।
- ऐसे सभी उद्यमों में 80 प्रतिशत रोजगार स्थानीय व्यक्ति को दिया जाना सुनिश्चित किया जाए।
- सरकार राज्य में संविधान के मौलिक अधिकारों की धारा 16-ए के अनुसार राज्य विधानसभा में एक संकल्प पारित करे, जिसमें तृतीय और चतुर्थ श्रेणी सहित उन सभी पदों पर स्थानीय युवाओं के लिए पद आरक्षित करे। इस तरह की व्यवस्था देश के चार राज्यों आंध्र प्रदेश, त्रिपुरा, हिमाचल और मणिपुर में है। यह अधिकार हमें संसद देती है। इसके लिए राज्य सरकार तुरंत एक संकल्प पत्र केन्द्र सरकार को भेजे।
- राज्य में उन सभी पदों में स्थानीय भाषाओं की अनिवार्यता लागू की जाए जो सीधे जनता से जुड़े हैं।