हरियाणा :- छात्रों, शिक्षकों व विपक्षी दलों के विरोध के बाद हरियाणा सरकार ने उन निर्देशों को वापस ले लिया है, जिनमें विश्वविद्यालयों को सरकारी फंड पर निर्भरता कम कर खुद फंड जुटाने के लिए कहा गया था। सरकार के उच्चतर शिक्षा विभाग ने शुक्रवार को राज्य विश्वविद्यालयों के सभी कुलपतियों को पत्र लिखकर सरकार के इस आदेश से अवगत करा दिया है। सरकार के इन निर्देशों को लेकर राज्य के सभी विश्वविद्यालयों के छात्रों में जबरदस्त गुस्सा था। पिछले दिनों रोहतक की तीनों विश्वविद्यालय के छात्रों ने हड़ताल की थी। वहीं, विपक्षी राजनीतिक दल भी इस मुद्दे को सरकार के खिलाफ भुनाने की कोशिश में जुटे हैं।
दरअसल, 29 मई को उच्चतर शिक्षा विभाग ने राज्य विश्वविद्यालयों के कुलपतियों को पत्र लिख आत्मनिर्भर बनने की दिशा में कदम उठाने के निर्देश दिए थे। विश्वविद्यालय को आत्मनिर्भर बनाने और फंड जुटाने के लिए पूर्व छात्रों, सीएसआर, पब्लिक पार्टनरशिप परियोजनाएं, अनुसंधान अनुदान, पेटेंट, विश्वविद्यालय की अनुपयोगी भूमि के व्यावसायिक उपयोग सहित ऑनलाइन और दूरस्थ शिक्षा के जरिये धन जुटाने की सलाह दी गई थी। साथ ही विश्वविद्यालयों को दिए जा रहे फंड में कटौती करने के लिए आगामी पांच वर्ष का रोडमैप तैयार कर सरकारी फंड पर निर्भरता घटाने और आत्मनिर्भर बनने के लिए आवश्यक कदम उठाने का आदेश दिया था। इन निर्देशों के बाद विश्वविद्यालयों व कॉलेजों के शिक्षक और कई राजनीतिक दलों के लोग विरोध में आ गए। इस विरोध के चलते सरकार ने अपने निर्देश वापस ले लिए हैं। सरकार ने साफ कर दिया है कि विश्वविद्यालयों के फंड में नहीं कटौती नहीं होगी। पहले की तरह सरकार की मदद जारी रहेगी। हरियाणा में कुल 42 विश्वविद्यालय हैं, जिनमें 14 राज्य विश्वविद्यालय हैं।
एमडीयू शिक्षक संघ के मुताबिक सरकार से फंड नहीं मिलने से विवि का बजट घाटे में रहेगा। इसे पूरा करने के लिए विद्यार्थियों की फीस वृद्धि ही एकमात्र रास्ता था। इससे विद्यार्थियों की जेब पर ही बोझ बढ़ेगा। फीस वृद्धि से पढ़ाई ही महंगी नहीं होगी, बल्कि शिक्षा का भी निजीकरण होगा। विवि के स्ववित्तपोषित होने से संस्थान की शाख पर सवाल खड़े होंगे। इससे विवि की गरीमा व प्रतिष्ठा ही नहीं, शिक्षा के स्तर में भी गिरावट आएगी। विवि खर्च बचाने के लिए शिक्षक कम व सस्ते रखेगा। पर्याप्त शिक्षक नहीं होने से विद्यार्थियों की पढ़ाई पर सीधा असर पड़ेगा।