केसीआर की अकुलाहट राष्ट्रीय स्तर पर छाने की है। इसी उद्देश्य से उन्होंने अपने दल तेलंगाना राष्ट्र समिति का नाम बदलकर भारत राष्ट्र समिति किया ताकि दूसरे राज्यों में उन्हें बाहरी नहीं समझा जाए। प्रारंभ में उन्होंने लालू प्रसाद नीतीश कुमार अखिलेश यादव एवं कुमारस्वामी को साथ लाकर कांग्रेस और भाजपा से अलग मोर्चा बनाने का भी प्रयास किया। जब इसमें कामयाब नहीं हुए तो अपना रास्ता अलग कर लिया।
महाराष्ट्र में तेलंगाना मॉडल को लागू करने का दावा कर किसानों को प्रभावित किया जा रहा है। कांग्रेस, शिवसेना, राकांपा एवं भाजपा की सक्रियता वाले महाराष्ट्र में बीआरएस ने पहली बार सदस्यता अभियान चलाकर पांव पसारने का प्रयास किया है। महाराष्ट्र में केसीआर की बढ़ती गतिविधियों की विपरीत प्रतिक्रिया का अंदाजा शिवसेना सांसद संजय राउत के उस बयान से लगाया जा सकता है जिसमें उन्होंने बीआरएस को भाजपा की बी टीम करार दिया है।
कांग्रेस नेता राहुल गांधी (Rahul Gandhi) ने भी बीआरएस का नया अर्थ बनाकर भाजपा की रिश्तेदार पार्टी बताया है। यह बेचैनी इसलिए है, क्योंकि केसीआर ने सभी दलों के असंतुष्टों को एकत्र कर एक नया मंच तैयार किया है।
बाबा साहेब के पौत्र प्रकाश अंबेडकर की पार्टी वंचित बहुजन अघाड़ी (VBA) का सहारा लेकर शरद पवार (Sharad Pawar) की ताकत को तोड़ने में जुटे केसीआर के प्रयासों पर सवाल नहीं है, लेकिन सफलता की राह उतनी सहज भी नहीं है, क्योंकि जिन नेताओं के सहारे केसीआर ने महाराष्ट्र का अखाड़ा तैयार करने का प्रयास किया है, उनमें से अधिकतर किसी न किसी पार्टी के असंतुष्ट हैं। राकांपा से ज्यादा आए और लाए जा रहे हैं।