मुंबई की एक अदालत ने कहा है कि बलात्कार के मामले में डीएनए परीक्षण को निर्णायक सबूत नहीं कहा जा सकता है और इसे केवल पुष्टिकरण साक्ष्य के रूप में ही इस्तेमाल किया जा सकता है। एक विशेष पोक्सो अदालत ने 16 वर्षीय लड़की के साथ बलात्कार करने के लिए दो लोगों को 20-20 साल के कठोर कारावास की सजा सुनाई है। हालांकि, डीएनए परीक्षणों ने लड़की गर्भ में पल रहे भ्रूण के जैविक पिता के रूप में दोनों की पुष्टि खारिज कर दी है।
TOI की रिपोर्ट के मुताबिक, पोक्सो अदालत की विशेष न्यायाधीश सीमा सी जाधव ने अपने फैसले में कहा, “हालांकि, डीएनए परीक्षणों ने आरोपियों को पीड़िता के बच्चे के जैविक पिता होने से बाहर रखा है, लेकिन इससे स्वचालित रूप से अनुमान नहीं लगाया जा सकता है कि उन्होंने उसका यौन उत्पीड़न नहीं किया। इस मामले में पीड़िता की गवाही सुसंगत है और अभियोजन पक्ष भी मामले की पुष्टि करता है। इसलिए, पीड़िता की गवाही ही आरोपी के खिलाफ पेनेट्रेटिव सेक्सुअल असॉल्ट के आरोप को साबित करने के लिए पर्याप्त सबूत है।”
जज ने फैसले में लिखा कि परीक्षणों से पता चला कि पीड़ित नाबालिग की मानसिक उम्र 11 साल के बच्चे जितनी थी। जब उसे उसकी गर्भावस्था के बारे में पता चला, तो उसने खुलासा किया कि काम के दौरान दुकान के एक कर्मचारी से उसकी दोस्ती हो गई थी , जो उसकी माँ की सहेली का पति था। 39 वर्षीय उस शख्स ने बार-बार उसका यौन उत्पीड़न किया था।